में उस माटी का वृक्ष नहीं
जिसको नदियों ने सींचा है..
में उस माटी का वृक्ष नहीं
जिसको नदियों ने सींचा है..
बंजर माटी में पलकर
मैंने मृत्यु से जीवन खींचा है
मैं पत्थर पर लिखी इबारत हूँ...
मैं पत्थर पर लिखी इबारत हूँ
शीशे से कब तक तोड़ोगे...
मिटने वाला नाम नहीं,
तुम मुझको कब तक रोकोगे
तुम मुझको कब तक रोकोगे
इस जग में जितने जुल्म नहीं,
उतने सहने की ताकत है..
तानों के भी शोर में रहकर
सच कहने की आदत है..
मैं सागर से भी गहरा हूँ
.. मैं सागर से भी गहरा हूँ
तुम कितने कंकड़ फेंकोगे,
चुन-चुन कर आगे बढूंगा मैं,
तुम मुझको कब तक रोकोगे
तुम मुझको कब तक रोकोगे
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तू युद्ध कर
माना हालात प्रतिकूल हैं,
रास्तों पर बिछे शूल हैं
रिश्तों पे जम गई धूल है
पर तू खुद अपना अवरोध न बन
तू उठ…… खुद अपनी राह बना………………………..
माना सूरज अँधेरे में खो गया है……
पर रात अभी हुई नहीं,
यह तो प्रभात की बेला है
तेरे संग है उम्मीदें,
किसने कहा तू अकेला है
तू खुद अपना विहान बन,
तू खुद अपना विधान बन………………………..
सत्य की जीत हीं तेरा लक्ष्य हो
अपने मन का धीरज,
तू कभी न खो
रण छोड़ने वाले होते हैं कायर
तू तो परमवीर है,
तू युद्ध कर
तू युद्ध कर
इस युद्ध भूमि पर,
तू अपनी विजयगाथा लिख
जीतकर के ये जंग,
तू बन जा वीर अमिट
तू खुद सर्व समर्थ है,
वीरता से जीने का हीं कुछ अर्थ है
तू युद्ध कर – बस युद्ध कर……
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मंजिल दूर है, मजबूत रख अपना हौसला |
किस्मत पर नहीं,
रख अपनी मेहनत पर भरोसा |
समुंदर की गहराइयों को मत माप |
लहरों से लड़कर, दिखा अपना प्रताप |
आसमान की बुलंदीयो की
कामना मत कर एकदम |
धैर्य रख और धीरे-धीरे रख अपना कदम |
हार जीत जिंदगी की नियति है |
इन सब से उबर कर,
आगे बढ़ना उसी में उन्नति है |
लोग चाहे जो कहें , बना अपनी पहचान |
कुछ कर दिखा , और बढ़ा अपनी शान |
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गुजरे तू जिन, राहों से,
जिस चट्टान पर रखे कदम,
कदमों की पर जाए छाप,
हो तेरे पैरों में, इतना दम|
चर्चा हो जब भी तेरी,
छोटा पड़े हर शब्दकोष,
नैति -नैति करके यही बोले,
एक विजेता, ऐसा था,
जिसने की थी, मरू भूमि में जीवन की खोज
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