चाणक्य नीति - Thememelogy

 नमस्कार दोस्तो स्वागत है आप सबका Thememelogy.com पर यहां पर में लेकर आया हूं आपके लिए हमेशा की तरह एक शानदार ओर शिक्षा वर्धक पोस्ट चाणक्य नीति 

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मुर्खास्तु परिहर्तव्यः प्रत्यक्षो द्विपदः पशुः।

भिनत्ति वाक्यशल्येन अदृष्टाः कण्टको यथा।।


श्लोक का अर्थ :

मूर्ख व्यक्ति से दूर ही रहना चाहिए, क्योंकि मनुष्य दिखता हुआ भी वह दो पैरों वाली पशु के समान है। वह सज्जनों को उसी प्रकार कष्ट पहुंचाता रहता है, जैसे शरीर में चुभा हुआ कांटा शरीर को निरंतर पीड़ा देता रहता है।।


श्लोक का भावार्थ :

कांटा छोटा होने के कारण अदृश्य हो जाता है और शरीर में धंस जाता है। मूर्ख की भी यही स्थिति है। वह भी अनजाने में दुख और पीड़ा का कारण बनता है। अकसर लोग मूर्ख की ओर भी ध्यान नहीं देते, उसे साधारण मनुष्य ही समझते हैं।


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आचारः कुलमाख्याति देशमाख्याति भाषणम्।

सम्भ्रमः स्नेहमाख्याति वपुराख्याति भोजनम्।।


श्लोक का अर्थ :

मनुष्य के व्यवहार से उसके कुल का ज्ञान होता है। मनुष्य की बोल-चाल से इस बात का पता चलता है कि वह कहां का रहने वाला है, वह जिस प्रकार का मान-सम्मान किसी को देता है, उससे उसका प्रेम प्रकट होता है और उसके शरीर को देखकर उसके भोजन की मात्रा का अनुमान लगाया जा सकता है।।


श्लोक का भावार्थ :

मनुष्य जिस प्रकार का व्यवहार करता है, उससे उसके कुल का ज्ञान भली-प्रकार हो जाता है। इसी प्रकार मनुष्य की भाषा और बोलचाल से उसके देश-प्रदेश अथवा रहने के स्थान का पता चलता है। मनुष्य जिस प्रकार का किसी के प्रति आदर प्रकट करता है, उससे यह स्पष्ट हो जाता है कि उसका स्वभाव कैसा है। इसी प्रकार उसके शरीर की बनावट देखकर उसके खाने की मात्रा का अनुमान होता है। 

बनावट और उसका व्यवहार किसी भी मनुष्य के मन की स्थिति को पूरी तरह से बता देता है। लेकिन इसके लिए अनुभव अपेक्षित है।


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दुर्जनस्य च सर्पस्य वरं सर्पो न दुर्जनः।

सर्पो दंशति कालेन दुर्जनस्तु पदे पदे।।


श्लोक का अर्थ :

दुष्ट व्यक्ति और सांप, इन दोनों में से किसी एक को चुनना हो तो दुष्ट व्यक्ति की अपेक्षा सांप को चुनना ठीक होगा, क्योंकि सांप समय आने पर ही काटेगा, जबकि दुष्ट व्यक्ति हर समय हानि पहुंचाता रहेगा।


श्लोक का भावार्थ :

चाणक्य ने यहां स्पष्ट किया है कि दुष्ट व्यक्ति सांप से भी अधिक हानिकारक होता है। सांप तो आत्मरक्षा के लिए आक्रमण करता है, परंतु दुष्ट व्यक्ति अपने स्वभाव के कारण सदैव किसी-न-किसी प्रकार का कष्ट पहुंचाता ही रहता है। इस प्रकार दुष्ट व्यक्ति सांप से भी अधिक घातक होता है।

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दुराचारी दुरदृष्ठीर्दुरा अवासि च दुर्जनः।

यन्मैत्री क्रियते पुम्भिर्नरः शीघ्रं विनश्यति।।


श्लोक का अर्थ :

बुरे चरित्र वाले, अकारण दूसरे को हानि पहुंचाने वाले तथा गंदे स्थान पर रहने वाले व्यक्ति के साथ जो पुरुष मित्रता करता है, वह जल्दी से नष्ट हो जाता है। 


श्लोक का भावार्थ :

सभी साधु-संतों, ऋषि-मुनियों का कहना है कि दुर्जन का संग नरक मे वास करने के समान होता है, इसलिए मनुष्य की भलाई इसी में है कि वह जितनी जल्दी हो सके, दुष्ट व्यक्ति का साथ छोड़ दे।


आचार्य ने यहाँ यह भी संकेत किया है कि मित्रता करते समय यह भली प्रकार से जांच-परख लेना चाहिए कि जिससे मित्रता की जा रही है, उसमें दोष तो नहीं है। यदि ऐसा है, तो उससे होने वाली हानि से बच पाना संभव नहीं। इसलिए ज्यादा अच्छा है कि उससे दूर ही रहा जाए।

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लालनाद् बहवो दोषास्ताडनाद् बहवो गुणाः।

तस्मात्पुत्रं च शिष्यं च ताडयेत् तु लालयेत्।।


श्लोक का अर्थ :

लाड़-दुलार से पुत्रों में बहुत से दोष उत्पन्न हो जाते हैं। उनकी ताड़ना करने से अर्थात दंड देने से उनमें गुणों का विकास होता है, इसलिए पुत्रों और शिष्यों को अधिक लाड़- दुलार नहीं करना चाहिए, उनकी ताड़ना करते रहनी चाहिए।        


श्लोक का भावार्थ :

यह ठीक है कि बच्चों को लाड-प्यार करना चाहिए, किंतु अधिक लाड़-प्यार करने से बच्चों में अनेक दोष भी उत्पन्न हो सकते हैं। माता-पिता का ध्यान प्रेमवश उन दोषों की ओर नहीं जाता। इसलिए बच्चे यदि कोई गलत काम करते हैं तो उन्हें पहले ही समझा-बुझाकर उस गलत काम से दूर रखने का प्रयत्न करना चाहिए। बच्चे के द्वारा गलत काम करने पर, उन्हें नजरअंदाज करके लाड़-प्यार करना उचित नहीं। बच्चों को डांटना भी चाहिए। किए गए अपराध के लिए दंडित भी करना चाहिए ताकि उसे सही-गलत की समझ आए।

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को हि भारः समर्थानां किं दूरं व्यवसायिनाम्।

को विदेशः सविद्दानां कः परः प्रियवादिनाम्।।


श्लोक का अर्थ:

समर्थ अथवा शक्तिशाली लोगों के लिए कोई भी कार्य कठिन नहीं होता, व्यापारियों के लिए भी कोई स्थान दूर नहीं, पढ़े-लिखे विद्वान व्यक्तियों के लिए कोई भी स्थान विदेश नहीं। इसी प्रकार जो मधुरभाषी है, उनके लिए कोई पराया नहीं।


श्लोक का भावार्थ:

जो लोग शक्तिशाली है अर्थात जिनमें सामर्थ्य हैं, उनके लिए कोई भी काम पूरा कर लेना कठिन नहीं होता है। वे प्रत्येक कार्य को सफलतापूर्वक कर लेते हैं। व्यापारी अपने व्यापार की वृद्धि के लिए दूर-दूर के देशों में जाते हैं, उनके लिए कोई स्थान दूर नहीं। विद्वान व्यक्ति के लिए भी कोई परदेस नही। वह जहां भी जाएगा, विद्वता के कारण वही सम्मानित होगा। इसी प्रकार मधुर भाषण करने वाला व्यक्ति पराए लोगों को भी अपना बना लेता है। उसके लिए पराया कोई भी नहीं होता, सब उसके अपने हो जाते हैं।

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एकेन शुष्कवृक्षेण दहन्मानेन वह्निना।

दहन्मते तद्वनं सर्वं कुपुत्रेण कुलं तथा।।


श्लोक का अर्थ:

जिस प्रकार एक ही सुखे वृक्ष में आग लगने से सारा जंगल जलकर राख हो जाता है, उसी प्रकार एक मूर्ख और कुपुत्र सारे कुल को नष्ट कर देता है।


श्लोक का भावार्थ:

जैसे जंगल का एक सूखा पेड़ आग पकड़ ले तो सारा वन जल उठता है, उसी प्रकार कुल में एक कुपुत्र हो जाए तो वह सारे कुल को नष्ट कर देता है। कुल की प्रतिष्ठा, आदर-सम्मान आदि सब धूल में मिल जाते है। दुर्योधन का उदाहरण सभी जानते हैं, जिसके कारण कौरवों का नाश हुआ। लंकापति रावण भी इसी श्रेणी में आता है।

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उपसर्गेन्यचक्रे च दुर्भिक्षे च भयावहे।

असाधुजनसंपर्के यः पलायति स जीवति।।


श्लोक का अर्थ:

प्राकृतिक आपत्तियां- जैसे अधिक वर्षा होना और सूखा पड़ना अथवा दंगे-फसाद आदि होने पर, महामारी के रूप में रोग फैलने, शत्रु के आक्रमण करने पर, भयंकर अकाल पड़ने पर और नीच लोगों का साथ होने पर जो व्यक्ति सब कुछ छोड़-छाड़कर भाग जाता है, वह मौत के मुंह में जाने से बच जाता है।


श्लोक का भावार्थ:

भावार्थ यह है कि जहां दंगे-फसाद हो, उस जगह से व्यक्ति को दूर रहना चाहिए। यदि किसी शत्रु ने हमला कर दिया हो या फिर अकाल पड़ गया हो और दुष्ट लोग अधिक संपर्क में आ रहे हो, तो व्यक्ति को वह स्थान छोड़ देना चाहिए। जो ऐसा नहीं करता, वह मृत्यु का ग्रास बन जाता है।

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श्लोकेन वा तदध्रेन पादेनैकाक्षरेण वा।

अबन्ध्यं दिवसं कुर्याद् दानाध्ययन कर्मभिः।।


श्लोक का अर्थ :

व्यक्ति को एक वेदमंत्र का अध्ययन, चिंतन अथवा मनन करना चाहिए। यदि वह पूरे मंत्र का चिंतन-मनन नहीं कर सकता तो उसके आधे अथवा उसके एक भाग का और यदि एक भाग का भी नहीं तो एक अक्षर का ही प्रतिदिन अध्ययन करें, ऐसा नीतिशास्त्र का आदेश है। अपने दिन को व्यर्थ न जाने दें। अध्ययन आदि अच्छे कार्यों को करते हुए अपने दिन को सार्थक बनाने का प्रयत्न करें। 


श्लोक का भावार्थ :

चाणक्य कहते हैं कि मनुष्य जन्म बड़े भाग्य से मिलता है, इसलिए उसे व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए - व्यक्ति को चाहिए कि वह अपना समय अपना दिन वेदादि शास्त्रों के अध्ययन में ही बिताए तथा उसके साथ-साथ दान आदि अच्छे कार्य भी करें। महान पुरुषों की विशेषताओं का वर्णन करते हुए कहा गया है - "व्यसनं क्षुत्रौ" अर्थात श्रेष्ठ ग्रंथों का अध्ययन करना उनका व्यसन होता है।

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दुर्जनस्य च सर्पस्य वरं सर्पो न दुर्जनः।

सर्पो दंशति कालेन दुर्जनस्तु पदे पदे।।


श्लोक का अर्थ :

दुष्ट व्यक्ति और सांप, इन दोनों में से किसी एक को चुनना हो तो दुष्ट व्यक्ति की अपेक्षा सांप को चुनना ठीक होगा, क्योंकि सांप समय आने पर ही काटेगा, जबकि दुष्ट व्यक्ति हर समय हानि पहुंचाता रहेगा।


श्लोक का भावार्थ :

चाणक्य ने यहां स्पष्ट किया है कि दुष्ट व्यक्ति सांप से भी अधिक हानिकारक होता है। सांप तो आत्मरक्षा के लिए आक्रमण करता है, परंतु दुष्ट व्यक्ति अपने स्वभाव के कारण सदैव किसी-न-किसी प्रकार का कष्ट पहुंचाता ही रहता है। इस प्रकार दुष्ट व्यक्ति सांप से भी अधिक घातक होता है।

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संसार तापदग्धनां त्रयो विश्रान्तिहेतवः।

अपत्यं च कलत्रं च सतां संगतिरेव च।।


श्लोक का अर्थ :

इस संसार में दुखी लोगों को 

तीन बातों से ही शांति प्राप्त हो सकती है - 

▪अच्छी संतान, 

▪पतिव्रता स्त्री और 

▪सज्जनों का संग।


श्लोक का भावार्थ :

अपने कार्यों अथवा व्यापार में लगे हुए व्यक्तियों के लिए घर में आने पर शांति मिलनी चाहिए। ऐसा तभी हो सकता है जब उसके पुत्र और पुत्रियां गुणी हो, स्त्री पतिव्रता और नम्र स्वभाव वाली हो तथा व्यक्ति के मित्र भले और सज्जन हो।

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